भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बदलाव / सपना मांगलिक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बदली धरती मौसम बदला
नभ वायु जल भी गन्दला
कट जंगल बने ऊँची इमारत
करें कृषक नौकरी की हिमायत
धूप ही धूप छाँव कहीं ना
मुश्किल हो गया है जीना
बुढा गयी सृष्टि की काया
कैसा यह बदलाव है आया?
करता न कुछ भी अभिभूत
हुई छटा पृथ्वी से विलुप्त
संकर बीज संकर ही नस्लें
कृत्रिम वातावरण कृत्रिम ही फसलें
कर छेड़छाड़ प्रकृति से क्या पाया?
अमृत देकर जहर कमाया
कैसा यह बदलाव है आया?