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बदी के अगवानी / मुनेश्वर ‘शमन’

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लूट-हत्या रेप-नरसंहार।
अब कहाँ सिरजे हे हैरानी।
आदमी के मर गेलय पानी।।

एक जइसन सुर्खिया अखबार के।
रोज खूनी खेल के गाथा।
औरतन के दरद में लपटाल।
खबर अइसन, जाय झुक माथा।
घटना-दुरघटना खुले-बाजार।
आदमीयत होलय बेमानी।

आ गेलय कइसन अजब मउसम।
सगरो पसरल कोय अजानल डर।
जिनगी के घुट रहल अब दम।
चलन नयका दौर के बरबर।
भला-सच्चा आजकल लाचार।
जुलमी-जालिम करय मनमानी।
 
कारवाँ के डगमगाबइत डेग।
अधमरु-सन सफर के उत्साह।
कने-कने त• जा रहल हे इन्सान।
जानवर जइसन पकड़ के राह।
फरक नत्र, क राही के बटमार।
बदी के, हो रहल अगवानी।