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बनता हुआ मकान / सिद्धेश्वर सिंह

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यह एक बनता हुआ मकान है
मकान भी कहाँ
आधा-अधूरा निर्माण
आधा-अधूरा उजाड़
जैसे आधा-अधूरा प्यार
जैसे आधी-अधूरी नफ़रत ।

यह एक बनता हुआ मकान है
यहाँ सबकुछ प्रक्रिया में है -- गतिशील गतिमान
दीवारें लगभग निर्वसन है
उन पर कपड़ॊं की तरह नहीं चढ़ा है पलस्तर
कच्चा-सा है फ़र्श
लगता है ज़मीन अभी पक रही है
इधर-उधर लिपटे नहीं हैं बिजली के तार
टेलीफोन-टी० वी० की केबिल भी कहीं नहीं दीखती ।
अभी बस अभी पड़ने वाली है छत
जैसे अभी बस अभी होने वाला है कोई चमत्कार
जैसे अभी बस अभी
यहाँ उग आएगी कोई गृहस्थी
अपनी सम्पूर्ण सीमाओं और विस्तार के साथ
जिसमें साफ़ सुनाई देगी आलू छीलने की आवाज़
बच्चॊं की हँसी और बड़ों की एक ख़ामोश सिसकी भी ।

अभी तो सब कुछ बन रहा है
शुरू कर कर दिए हैं मकड़ियों ने बुनने जाल
और घूम रही है एक मरगिल्ली छिपकली भी
धीरे-धीरे यहाँ आमद होगी चूहों की
बिन बुलाए आएँगी चीटियाँ
और एक दिन जमकर दावत उड़ाएँगे तिलचट्टे ।

आश्चर्य है जब तक आऊँगा यहाँ
अपने दल-बल छल-प्रपंच के साथ
तब तक कितने-कितने बाशिन्दों का
घर बन चुका होगा यह बनता हुआ मकान ।