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बनरी के बारात / श्रीकान्त व्यास

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धूम धड़ाका सें बनरी के ऐलोॅ छै बारात,
खुशी सें उछलै नाचै कूदै शेर सियार साथ।

भालू जी डुगडुगी बजावै आरो झूमै गावै,
बहुरूपिया धरी रूप बनरवां डांड़ोॅ लचकावै।

सद्बुद्धि सें खोपड़ी भरोॅ आरो ज्ञान खजाना,
बच्चा सिनी केॅ मुँहोॅ सें यही सुनै छी गाना।

इस्कूल के बच्चा मय सुग्गा जेनां टें-टें बोलै,
भीतर के सब्भे ज्ञान रही-रही बाहर खोलै।

गाय, बैल के भार माय दोसरा केॅ थमाय दै,
अब नै जानवर चरैवोॅ बाबू केॅ समझाय दै।

पढ़ी-लिखी केॅ पंडित बनीकेॅ ज्ञान बाँटवै,
पढ़लोॅ-ज्ञानी के बीचें फिलौसफी छांटवै।

गाँव टोला इस्कूली के नाम हम चमकैवै,
रोज इस्कूली में जाय के प्रार्थना गैवै।