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बना घोंसला पिंजरा पंछी / जानकीवल्लभ शास्त्री

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बना घोंसला पिंजरा पंछी !

अब अनंत से कौन मिलाये
जिससे तू खुद बिछड़ा पंछी !

सुखद स्वप्न लख किसी सुदिन का
चुन-चुन पल-छिन तिनका-तिनका
रहा मूल से दूर-दूर, पर --
डाल-पात तो झगड़ा पंछी !

अग्नि जले तब विफल न इंधन
मुक्ति करम का मर्म, न बंधन
उड़ा हाय !जो सबसे आगे
वह अपने से बिछड़ा पंछी