भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बनी का सासरिया सी हो / निमाड़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बनी का सासरिया सी हो
बनी जी टीका आई र्ह्याज
,टीको पेर्यों क्योनी
राज बना जी न
काई हट मांड्यो
राजम्हारी सकलाई रो
तोड़ो, म्हारी बिंदी रो
अकोडो ,म्हारा दुई हथ
लसरा मोती ,तुम पर वारू
म्हारो जीव बनी जी न काई
हट मांड्यो राज बनी का
सासरिया
सी हो ............बनी का
सासरिया सी हो बनी जी
हार आई रह्याज ,बनी का
सासरिया सी हो बनिजी
कंगन आई र्ह्याज ,बनी का
सासरिया सी हो बनी जी
चम्पक आई
रह्याज ,बनी का सासरिया
सी हो बनी जी चुन्द्ड आई
र्ह्याज,चूंदर पेरो
क्यो नी राज बनी
जी न काई हट मांड्यो
राजम्हारी साकलाई रो
तोड़ो ,म्हारी बीदी रो
अकोडो ,म्हारा
दुई हथ लसर मोती, तुम पर
वारू म्हारो जीव, बनी जी
न कई हट मांड्यो राज।