भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बन्द कर लो द्वार / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

06:10, 5 अक्टूबर 2019 का अवतरण

136
हे बन्धु मेरे
बन्द कर लो द्वार
लौटना नहीं।
137
हम थे जोगी
धरा -गगन घर
चले जिधर।
138
जागोगे जब
हमें नहीं पाओगे
रोना अकेले।
139
हरित पत्र
रक्तिम पतझर
मेपल झरा।
140
हँसा विपिन
जगमग आँगन
मेपल लाल।
141
हृदयतल
आरती बन गूँजे
मधुर बैन।
142
ज़रा ठहर,
बीतने ही वाला है
ये तीसरा पहर।