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बरखा बहार / मुनेश्वर ‘शमन’

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सावन आके लग गेलय दुआर,
विलमला तूँ कउने गली वलमा।
रुक-रुक बरसय बरखा बहार,
विलमिला तूँ कउने गली बलमा।।

घूम फिर घिर-घिर आवय,
बइरिन करकी बदरिया।
प्यासल मोरे मनवाँ रे,
पियासले उमरिया।
जियरा के जराबय नित फुहार,
विलमला तूँ कउने गली बलमा।।

आवय के तऽ आस जगलय,
हेलइते अदरबा।
पोछइते- पोछइते लोरा,
मिट गेलय कजरबा।
बेरथ भेलय सब सज-धज सिंगार,
विलमला तूँ कउने गली बलमा।।

अँखिया में निन्दिया कहाँ,
सूना-घर-अँगनमा।
रतिया भर ताना मारय,
चूडी अउ कँगनमा।
दिनमो हम्मर दिखऽ हइ अन्हार,
विलमला तूँ कउने गली बलमा।।


तूँ कब अइबा
कब से आँख लगल रहिया में,
सावन अयलय, तूँ कब अयबा।
 
जाड़ा जुलमी बहुत सतयलक,
आस में बीतल सँउसे फागुन।
दिल में दरद उठय घूम-फिर जब,
बिछिया बाजय रुनझुन-रुनझुन।
ताना सुन-सुन ऊबल मनवाँ
कहिया आके धीर बाँधयबा ॥

सप-सप पछिया के झोंका से,
अगिया लग जाहे देहीया में।
प्यासल जियरा के पियास कुछ,
आउर बढ़य रिमझिम फुहीया में।
बइरी बदरा के संगी बन,
अजी! बताबऽ कते जरयबा॥

भरल जुआनी ई सब बेरथ,
बरखा में जब बलम पास नञ ।
ऐसन जिनगी के, की मतलब,
जेकरा में नञ रस, हुलास नञ ।
लाख जतन से मन नञ मानय,
हार गेली हम, तूँहि मनयबा।