Last modified on 15 फ़रवरी 2017, at 17:47

बरखा रानी / रमेश तैलंग

झम-झमा-झम बरसा पानी।
आई सजकर बरखा रानी।

चम-चम, चम-चम बिजली चमके।
गड़-गड़, गड़-गड़ बादल गरजे।
निकली बालक सेना घर से।
दुबकी बैठी बूढ़ी नानी।

सूखे ताल-तलैया भीगे।
नंग-धड़ंगे भैया भीगे।
खत्म हुए भभके गर्मी के।
पाँवों जलती धूप सिरानी।

आँगन वाले पीपल दादा।
खुश हैं देखो सबसे ज्यादा।
गुस्से में हैं टूटा छप्पर
सुनकर बूँदों की शैतानी।