भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी / ज़हीर रहमती

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:47, 26 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़हीर रहमती }} {{KKCatGhazal}} <poem> बरगुज़ीदा ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी
देखते हैं तुझे दुनिया की नज़र से हम भी

अपने रस्ते में बड़े लोग थे रफ़्तार-शिकन
और कुछ देर में निकले ज़रा घर से हम भी

रात उस ने भी किसी लम्हे को महसूस किया
लौट आए किसी बे-वक़्त सफ़र से हम भी

सब को हैरत-ज़दा करती है यहाँ बे-ख़बरी
चौंक पड़ते थे यूँ ही पहले ख़बर से हम भी

ज़र्द चेहरे को बड़े शौक़ से सब देखते हैं
टूटने वाले हैं सर-सब्ज़ शजर से हम भी

कौन सा ग़ैर ख़ुदा जाने यहाँ है ऐसा
बुर्क़ा ओढ़े हुए आए थे इधर से हम भी