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बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी / ज़हीर रहमती

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बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी
देखते हैं तुझे दुनिया की नज़र से हम भी

अपने रस्ते में बड़े लोग थे रफ़्तार-शिकन
और कुछ देर में निकले ज़रा घर से हम भी

रात उस ने भी किसी लम्हे को महसूस किया
लौट आए किसी बे-वक़्त सफ़र से हम भी

सब को हैरत-ज़दा करती है यहाँ बे-ख़बरी
चौंक पड़ते थे यूँ ही पहले ख़बर से हम भी

ज़र्द चेहरे को बड़े शौक़ से सब देखते हैं
टूटने वाले हैं सर-सब्ज़ शजर से हम भी

कौन सा ग़ैर ख़ुदा जाने यहाँ है ऐसा
बुर्क़ा ओढ़े हुए आए थे इधर से हम भी