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बरत करो रे नर एकादशी को / मालवी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बरत करो रे नर एकादशी को
रामजी का नाम बिन गती कसी
सूरज सामे झूटो न्हाके
जल में कुल्ला वे करसी
इन करणी से हुवा कागला
करां-करां करता फिरसी
बरत करो रे नर एकादशी
पणघट ऊपर ऐड़ी निरखे
पर निन्दिया तो वे करसी
इन करणी से हुवा डेंडका
टर्रा-टर्रा वे करसी
बरत करो रे नर एकादशी
डेली बैठी पाग संवारे
पर घर चुगली वे करसी
इन करनी का हुवा कूतरा
घरे-घरे भूकता फिरसी
बरत करो रे नर एकादशी
पांच जणा मिल हतई करन्ता
पांची चुगली वे एकरसी
इन करणी का हुवा हीजड़ा
घरे-घरे नचता फिरसी
बरत करो रे नर एकादशी
ग्यारस का दल माथो न्हावे
बारस का दन तिल वे खासी
इन करणी का हुवा गधकड़ा
गली-गली रेंकता फिरसी
बरत करो रे नर एकादशी
अन्न को दान, वस्तर को दान
कन्या दान वे करसी
इन करणी से हुवा कुंवर जी
पाल की पड़न्ता वे फिरसी
मीरां के प्रभु गिरिधर नागर
हरि के चरनां चित वे धरसी