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बरसत मिहरा आया श्रावन / शिवदीन राम जोशी

बरसत मिहरा आया श्रावन ।
अमृत बरसा, बरसत रिमझिम, धरा हो गई पावन ।
बादल उमड़ी घुमड़ी रंग छाये, मौर पपिहरा कोयल गाये,
चमकत बिजरी, परम मनोहर, श्रीराधे मन भावन ।
बंशीधर की बांसुरी बाजी, सुण-सुण गोप्यां हो गई राजी,
राधा प्रेम बलैयां लेवे, नांचत कृष्ण लुभावन ।
वन पहार हरे सघन हो गये, संत मुनि मन मगन हो गये,
अद्भुत छटा बहारें आई, रति पति लगे लजावन ।
कहे शिवदीन हुये सब सुखिया, ना कोई जग में रहा न दुखिया,
आनन्द प्रेम विभोर देवगण, गंद्रफ* लागे गावन ।



 *गन्धर्व