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बरसल बदरा / मुनेश्वर ‘शमन’

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एरी दइया, अखार जइते,
जइसँहि निकसल अदरा।
रात-रात भर नाच-नाच के,
झूम के बरसल बदरा।।

साँय-साँय पुरबइया बोले,
जबरन टूटल टाटी खोले।
करिया-करिया रात अन्हरिया,
डर से धक-धक छाती डोले।
ओदाने- सिरहाने चूअय,
टप-टप उजड़ल छपरा।।

आहर- पोखर ताल-तलैया,
उमड़ल जइसे गंगा मइया।
जुड़ा रहल सब प्रान हकासल,
लेकिन दूर बसल मोरे सँइया।
घर- अँगना में रह-रह छेड़य,
नटखट-चंचल अँचरा।।
 
दरद-टीस चंउक के जागल,
नीन-चैन हाय रे भागल।
ऊँघय- जागय बिसरल बतिया,
आँख बलम के रहिया लागल।
रिमझिम में भींजल देहिया,
दियरा-सन सुलगल जियरा।।