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बर्तनों पर कविता / शैलजा सक्सेना

आज मेरे हाथों ने लिखी
चमकते हुये बर्तनों पर एक कविता,
साफ़ फर्श ने गाये कुछ गीत,
झाड़न, पौंछा, झाडू गुनगुनाने लगे कुछ नज़्में,
पर्दों और खिड़कियों ने की वाह-वाह!

कविता रचने का अहसास बहा
हथेलियों और कंधों की नसों के बीच से
घर के कोने-कोने तक…

कौन कहता है कि कविता
केवल कागज़ पर रची जाती हैं?