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बलात्कार / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’

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मात-पिता का सुमिरन करके,
औ शारद को शीश नवाय।
ध्यान लगाकर श्री गणेश का,
अशीष जगत् गुरू का पाय।

भय नारी का मिटे ह्रदय से,
दिल हौसला चमक छितराय।
माँ दुर्गा का धरे ध्यान जो,
उससे नरपिशाच घबराय।

दुष्ट पापी जब बढ़े जग में,
दुर्गा रूप नारी अपनाय।
उठा खड्ग सर काटे धर से,
उठै न दुष्ट हाथ-पैर भाय।

देख दानवता नर ह्रदय का,
अंतर्मन मेरा पछताय।
चेतो नर चेतो तुम अब भी,
काहे तेरा मति भरमाय।

मानो दुष्ट मेरी बात तुम,
क्यों आँचल औरत शरमाय।
बंद करो अब बलात्कार को,
न तो अति का अंत हो जाय।