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बसंत आया / शार्दुला नोगजा

क्या तुम्हारे शहर में भी
सुर्ख गुलमोहर की कतारें हैं
क्या अमलतास की रंगोबू
तुम्हें भी दीवाना करती है
क्या भरी दोपहरी में तुम्हारा भी
भटकने को जी करता है
अगर हाँ तो सुनो जो यों जीता है
वो पल-पल मरता है
क्योंकि हर क्षण कहीं कोई पेड़
तो कहीं सर कटता है।