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बसंत की ऋतु / श्वेता राय

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ये बसंत की ऋतु सखी! मन बहकाने आई है

फूलों ने भौरों पर अपने
सौरभ का जादू डाला
मस्त हुआ ये मौसम जैसे
पीली यौवन की हाला
गर्म हवाएं छूकर अब तन दहकाने आई है
ये बसंत की ऋतु सखी! मन बहकाने आई है

तरु शाखायें लदी हुई हैं
कोमल कोमल पात लिये
धरती भी अब झूम रही है
पीली पीली गात लिये
कोयल की मधुरिम बोली वन चहकाने आई है
ये बसंत की ऋतु सखी! मन बहकाने आई है

सरस मिलन ये दो ऋतुओं का
तन मन जिसमे नृत्य रता
देख के यौवन वसुधा का
आनंदित हो देह लता
बाहों की माला का ये चाह जगाने आई है
ये बसंत की ऋतु सखी!,मन बहकाने आई है...