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बसंत गीत-सखि हे ऋतु बसंत के गीत / धीरज पंडित

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सखि हे। ऋतु वसंत के गीत
कि कहियोॅ छन-छन उमगै छै
मन मेॅ जागै प्रीत, सखि हे...

भोर-भिनुसरबा अमुआं केडारी,
कोयल दै छै हमरा गारी।
ठीक सेॅ पहनोॅ अब तोॅय साड़ी
ऐसनोॅ दै छै सीख, सखि हे...

फुल सीनी देखि केॅ हमरा,
हांसै जेना लाज के गजरा,
घर-बाहर हमरा पर पहरा
ऐसनोॅ होय छै प्रतीत, सखि हे

पीरो सरसों नांकी चुनरिया
उपर से ई बारी उमरिया।
चम-चम चमकै माँग के बिंदिया
प्रीतम के संगीत सखि हे

पापी पपीहरा पीय-पीय बोलै,
सुनी-सुनी हमरोॅ अंग-अंग डोलै।
चक-चक नींद आँख सेॅ जागै
याद आवै छै अतीत, सखि हे...

फागुन के दिन रंग सेॅ भरलोॅ
धुम मचईतै घर मेॅ सगरोॅ
अइतै प्रीतम आय जे हमरोॅ
”धीरज“ के उम्मीद, सखि हे...