भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बसंत होली / भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem> तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी। इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीन…)
 
(पृष्ठ से सम्पूर्ण विषयवस्तु हटा रहा है)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>
 
तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी।
 
इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीनौ जोरा-जोरी।
 
छोड़ि  दे ईकि बंद चोलिया पकरै चोर हम अपनौ री।
 
‘हरीचंद’ इन दोउन मेरी नाहक कीनी चित चोरी री।
 
  
 
देखो बहियाँ मुरक मेरी ऐसी करी बरजोरी।
 
औचक आय धरी पाछे तें लोकलाज सब छोरी।
 
छीन झपट चटपट मोरी गागर मलि दीनी मुख रोरी।
 
नहिं मानत कछु बात हमारी कंचुकि को बँद खोरी।
 
एई रस सदा रसि को रहिओ ‘हरीचंद’ यह जोरी। 
 
 
</poem>
 

13:22, 15 सितम्बर 2010 का अवतरण