Last modified on 10 जुलाई 2018, at 16:58

बसंत / पंकज चौधरी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:58, 10 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

(!)
रंग में पत्ते
रंग में फूल
रंग में मिट्टी
रंग में पवन
रंग में धूप
रंग में अग्नि
रंग में ठंड
रंग में पानी
रंग में सुबह
रंग में शाम
रंग में कोयल
रंग में पपीहा
रंग में चांद
रंग में चकोर

रंग में गगन
रंग में वसुंधरा

रंग में उत्तर
रंग में दक्षिण
रंग में पूरब
रंग में पश्चिम

रंग में कविता
रंग में संगीत

रंग में मन
रंग में अंग

रंग में छोरे
रंग में छोरियां

सब के रंग में
जीवन का रंग
ऐसे बना बसंत।

(!!)
टेसू के फूल
सूरज के सुनहरे प्रकाश में
जिस तरह और लाल हो उठते हैं
भारत की स्त्रियां
बसंत में
उतनी ही और कमनीय हो उठती हैं

बसंत
सबसे पहले
प्रकृति में उतरता है
फिर मन में
और फिर भारत की स्त्रियों में

बसंत की
सबसे सुंदर
और सशक्त अभिव्यक्ति है
भारत की स्त्रियां

या
बसंत में ही
सबसे सुंदर
और सशक्त अभिव्यक्त होती हैं
भारत की स्त्रियां

चलती-फिरती फुलवारी हो जाती हैं
बसंत में
भारत की स्त्रियां

और बसंत में ही
असीमित और अनियंत्रित अधिकार पाती हैं
भारत की स्त्रियां।

(!!!)
एक तो खुद बसंत
ऊपर से उसका इतना गुण-गान
जैसे चांद में चार चांद!