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बसन्त के बारे कविता / अनुज लुगुन

बसन्त के बारे कविता लिखने के लिए
एक कवि भँवरे की सवारी पर चढ़ा
और वह धम्म से गिर पड़ा,

एक कवि अपनी प्रेमिका की गोद में लेट कर
मौसम का स्वाद ले रहा था
और उसकी कविता स्वादहीन हो गई
उसकी कविता के पात्र और चरित्र मरे हुए पाए गए
उसकी भाषा जिसके माध्यम से वह
सबसे अच्छी कविता लिखने का दावा करता था
उसकी जुबान को लकवा हो गया,

बसन्त के बारे में कविता लिखने से डरता हूँ कि
कहीं कोई भँवरा मेरे गीतों पर रीझ ना जाय
पपीहे भूल ना जाएँ
बाज़ के हमलों से बचने,
सबसे बुरे समय में
सबसे ख़ुशनुमा और रंगों से सराबोर मौसम पर
कविता लिखते हुए डरता हूँ
अपनी भाषा और शब्दों के दिवालिया हो जाने से,

बसन्त के बारे में
कविता लिखने से पहले
अपने बारे में सोचता हूँ
और पाता हूँ अपनी बहन को
बन्दूक की नोंक से आत्मा के ज़ख़्म सीते हुए
उसके पास ही होती है एक उदास और ठहरी हुई नदी
जिसके आँसुओं में जलमग्न होते हैं
हरवैये बैल और मुर्गियों के अण्डे
मैं सुनता हूँ
अपने बच्चों और मवेशियों की डूबती हुई चीख़
और वहीं देखता हूँ
अपने ही देश के दूसरे हिस्से के नागरिकों को
पिकनिक मनाते, जश्न मनाते और फ़ोटो खिंचवाते हुए,
तब मेरी धरती और मेरे लोगों का ख़ून
मेरी क़लम की निब से बहने लगता है
मैं विद्रोह करता हुआ पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर पहुँचकर
पेड़ों से कहता हूँ कि विदा करो पतझड़ को
अब और देर नहीं
ले आओ मेरी माँ की आँखों में हँसी,

पेड़ मेरी बात को गौर से सुनते हैं और
ले आते हैं अपनी कोमल नई डालियों पर
छोटी-छोटी चिडिय़ों और फूलों के गीत
जंगल में घुलने लगती है महुवाई गंध
गिलहरी नृत्य करते हुए
नेवता देते हैं पण्डुकों को भी नृत्य करने के लिए
और पण्डुक संकोचवश केवल गीत ही गा पाते हैं,
तब भी मैं लिख नहीं पाता हूँ
उनकी प्रशंसा में कोई कविता
बस, उन्हें शुक्रिया कहता हूँ कि उनके बीच
अब भी हमारी पहचान बाक़ी है
और वे हमें हमारी भाषा से पहचानते हैं,
बसन्त के देश में
बसन्त के दिनों में
बसन्त के बारे कविता न लिखना अपराध है
जैसे किसी देश में रहते हुए
उस देश के राजा के मिज़ाज की कविता न लिखना
और तब मैं कवि नहीं अपराधी होता हूँ
जो बूढ़ी माँ की आँखों में
डूबते अपने गाँव को बचाने के लिए
समुद्र की पाग़ल लहरों से टकरा जाता हूँ,

बसन्त के बारे में कविता लिखने बैठा मैं
बसन्त के बारे में नहीं
अपने बारे में लिखता हूँ
और कविता के शब्द जेल की अन्धेरी कोठरियों को तोड़ते हैं
उसके अन्दर क़ैद पतझड़ को विदा करने के लिए

रचनाकाल : 11 मार्च 2013