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बसर ऐसी हुई है तीरगी में / कांतिमोहन 'सोज़'

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बसर ऐसी हुई है तीरगी में ।
कि डर लगता है अब तो रौशनी में ।।

मैं ख़ुद तस्वीर होकर रह गया था
कोई जादू था उसकी ख़ामुशी में ।

कहीं वादा वफ़ा अब हो न जाए
मज़ा आने लगा है तिश्नगी में ।

हर एक शै नामुकम्मल सी लगे है
न जाने क्या कमी है ज़िन्दगी में ।

न दे सकती है वो बन्दानवाज़ी
जो मिल जाता है अक्सर बन्दगी में ।

कहानी ख़त्म ही होती कहाँ है
कई जौहर छुपे हैं मान्दगी में ।

वो आया सोज़ तो सबने ये समझा
कहाँ पर क्या कमी थी चाँदनी में ।।