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बस्ती के उस पार से तो कभी वनों के पीछे से
कभी लम्बी दूरी की, लदी मालगाड़ी के नीचे से
सत्ता के समर्थन में जब गूँजेगा तू बनकर भोंपू
सरस किलकारियाँ भरेगा, हकूमत के बगीचे से
घनघनाएगा, बुड्ढे, तू पहले, फिर साँस लेगा मीठी
और सागर-सा गरजेगा कि दुनिया तूने यह जीती
गूँजेगा तू लम्बे समय तक, कई सदियों के पार
सब सोवियत नगरों की, बस होगा तू ही तो सीटी
रचनाकाल : 6-9 दिसम्बर 1936