Last modified on 7 नवम्बर 2019, at 14:29

बस इतना ही करना / प्रताप नारायण सिंह

बस इतना ही करना कि
मेरे अचेतन मन में जब तुम्हारे होने का भान उठे
और मैं तुम्हें निःशब्द पुकारने लगूँ
तुम मेरी पुकार की प्रतिध्वनि बन जाना

बस इतना ही करना कि
सर्द रातों में जब चाँद अपना पूरा यौवन पा ले
और मेरा एकाकीपन उबलने लगे
तुम मुझे छूने वाली हवाओं में घुल जाना

बस इतना ही करना कि
स्मृति की वादियों में जब ठंडी गुबार उठे
और मेरे प्रेम का बदन ठिठुरने लगे
तुम मेरे दीपक की लौ में समा जाना

बस इतना ही करना कि
पीड़ा की तपिश जब कभी मद्धिम पड़ने लगे
और मैं एक पल के लिए भी भूल जाऊँ
तुम मेरे मन की आग बन जाना

बस इतना ही करना कि
मेरी साँसें जब मेरे सीने में डूबने लगें 
और मैं महा-प्रयाण की तैयारी करने लगूँ
तुम मिलन की आस बन जाना