Last modified on 7 फ़रवरी 2009, at 21:02

बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई लिक्खा है / मुनव्वर राना

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:02, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मुनव्वर राना |संग्रह=घर अकेला हो गया / मुनव्वर र...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई लिक्खा है
हमारे घर के बरतन पे आई.एस.आई लिक्खा है

यह मुमकिन ही नहीं छेड़ूँ न तुझको रास्ता चलते
तुझे ऐ मौत मैंने उम्र भर भौजाई लिक्खा है

मियाँ मसनद नशीनी मुफ़्त में कब हाथ आती है
दही को दूध लिक्खा दूध को बालाई लिक्खा है

कई दिन हो गए सल्फ़ास खा कर मरने वाली को
मगर उसकी हथेली पर अभी शहनाई लिक्खा है

हमारे मुल्क में इन्सान अब घर में नहीं रहते
कहीं हिन्दू कहीं मुस्लिम कहीं ईसाई लिक्खा है

यह दुख शायद हमारी ज़िन्दगी के साथ जाएगा
कि जो दिल पर लगा है तीर उसपर भाई लिक्खा है