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बस घड़ी भर के लिए जी दूसरा हो जाएगा / 'सुहैल' अहमद ज़ैदी

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बस घड़ी भर के लिए जी दूसरा हो जाएगा
उस से मिल भी लें तो क्या दिल का भला हो जाएगा

दर्द की नैरंगियाँ देखो सर-ए-शाख़-ए-सुकूत
मुँह से कुछ निकला तो ये पंछी हवा हो जाएगा

हिज्र की शब दिल ज़रा तड़पा तड़प कर रह गया
मैं समझता था के जाने क्या से क्या हो जाएगा

मैं सफ़र करता रहूँगा लेकिन इक दिन देखना
तंग आ कर रास्ता मुझ से जुदा हो जाएगा

जाने क्यूँ इस बात पर इतना मुसिर है वो ‘सुहैल’
क्या मेरे कह देने से वो बुत ख़ुदा हो जाएगा