भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बस तेरी कृपा भरोसे / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बस तेरी कृपा भरोसे तेरे द्वारे पड़ा रहूँ,
लग जाय पार इतना ही तो हो जाए बेड़ा पार!
पर यह भी कहाँ देख सह पाती है तेरी महरी,
घर पर आते ही मुझे भगा देती है फिर बाज़ार!