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"बस नज़र का तेरी अंदाज़ बदल जाता है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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क्या करें, सुन के जो आवाज़ बदल जाता है! | क्या करें, सुन के जो आवाज़ बदल जाता है! | ||
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उनके मिलने का तो अंदाज़ बदल जाता है | उनके मिलने का तो अंदाज़ बदल जाता है | ||
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02:15, 23 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
बस नज़र का तेरी अंदाज़ बदल जाता है
सुर तो रहते हैं वही, साज़ बदल जाता है
कुछ तो कहता है कोई आँखों ही आँखों में, मगर
बात-ही-बात में वह राज़ बदल जाता है
कौन होता है बुरे वक़्त में साथी किसका!
आइना भी ये दग़ाबाज़ बदल जाता है
लीजिए ज़ब्त किया हमने, मगर मुँह का रंग
क्या करें, सुन के जो आवाज़ बदल जाता है!
आज तुझसे वे निगाहें भी मिल रहीं हों, गुलाब!
उनके मिलने का तो अंदाज़ बदल जाता है