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"बहर में बांध ले काफिया रख / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर

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गज़ल में सारा वाकिया रख
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नहीं मेल है साज-सुर में
 
नहीं मेल है साज-सुर में
तु फिर बोल ही कुछ बढ्‍ढ़िया रख
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जरा बोल ही बढ्‍ढ़िया रख
  
 
जिरह,झिड़कियाँ,लाड़,सीखें
 
जिरह,झिड़कियाँ,लाड़,सीखें
 
बुजुर्गों ने जो भी दिया,रख</poem>
 
बुजुर्गों ने जो भी दिया,रख</poem>

21:55, 8 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

बहर बाँध ले काफ़िया रख
गज़ल में हर इक वाकिया रख

बढ़े शान ना दोस्तों से
कि दुश्मन तो कुछ शर्तिया रख

उठे हैं असुर फिर यहाँ अब
विभीषण-सा इक भेदिया रख

लिखा और जाना है कुछ तो
जरा साफ ये हाशिया रख

नहीं मेल है साज-सुर में
जरा बोल ही बढ्‍ढ़िया रख

जिरह,झिड़कियाँ,लाड़,सीखें
बुजुर्गों ने जो भी दिया,रख