भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहारें आएँगी होंठों पे फूल खिलेंगे / गोपाल सिंह नेपाली
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:01, 21 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली }} {{KKCatGeet}} <poem> बहारें आएँगी, होंठो…)
बहारें आएँगी, होंठों पे फूल खिलेंगे
सितारों को मालूम था, हम-तुम मिलेंगे
छिटकेगी चाँदनी, सजेगा साज, प्यार का बजेगी पैंजनी
बसोगे मन में तुम तो मन के तार बजेंगे
सितारों को मालूम था...
मिला के नैन हम-तुम दो हो गए
अजी हम पलकें उठाते ही खो गए
नैन चुराएँगे, जिया निछावर करेंगे
कली जैसा कच्चा मन कहीं तोड़ न देना
बिछड़ने से पहले हम अपनी जान दे देंगे
(1955) फ़िल्म 'नवरात्रि'
</poem