बहुत उदास था
अपने ही काँधे पर
सिर रख कर रोने लगा
अपने आप को
बाहों में लेकर
देर तक
चुप कराता रहा खुद ही
दिन भर अपनी ही बोटियाँ
नोच-नोच कर चबाता रहा
अपने आप को पानी की तरह
निगलता रहा घूँट-घूँट कर के
रात हुई
तो बिछा लिया
खुद को
जमीन पर चद्दर की तरह
रखकर सिराहने
तकिये की तरह खुद को
ओढ़ लिया ऊपर
अपना ही जिस्म
और
लंबी तानकर सो गया मैं।