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बहुत याद आते हैं गुज़रे हुए दिन / डी. एम. मिश्र

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बहुत याद आते हैं गुज़रे हुए दिन
हवा हो गये वो महकते हुए दिन

मेरी याद आये तो यह सोच लेना
इधर भी वही हैं तड़पते हुए दिन

उठाओ नज़र तो शिकारी ही दिखते
परिंदों के जैसे हैं सहमे हुए दिन

ज़रा मेरे हालात पर गौर करना
बचे हैं विवशता के मारे हुए दिन

सितारों से कैसे मुलाकात होगी
नज़रबंद घर में हैं उड़ते हुए दिन

ये मुमकिन नहीं बंद सब रास्ते हों
चलो याद करते हैं भूले हुए दिन