भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहुत हमने चाहा कि दिल भूल जाये / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:57, 21 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…)
{KKGlobal}}
बहुत हमने चाहा कि दिल भूल जाये
मगर तुम भुलाने में भी याद आये
किसी मोड़ पर ज़िन्दगी आ गयी थी
बढ़ा कारवाँ और हम रुक न पाये
नहीं उनको दिल से भुलाया है हमने
कई बार यों तो क़दम डगमगाये
कभी जो मिलें फिर तो पहचान लेना
नहीं तुमसे हम आज भी हैं पराये
तुम्हारी ही यादों की लौ जल रही थी
दिवाली के जब भी दिए जगमगाये
कभी अपने हाथों सँवारा था तुमने
गुलाब आज तक वैसे खिल ही न पाये