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बह रही हैं आँसुओं में अब तुम्हारी चिठ्ठियाँ / अमन चाँदपुरी

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बह रही हैं आँसुओं में अब तुम्हारी चिठ्ठियाँ

प्यार के बदले विरह के बीज ऐसे बो गए
प्रीति की शब्दावली के अर्थ सारे सो गए
शुष्क मरुथल में बनी मृग की पिपासा, आस थी-
तुम गए तो प्यार के संदर्भ झूठे हो गए
पर अभी भी राह तकती हैं कुँआरी चिठ्ठियाँ
बह रही हैं आँसुओं में अब तुम्हारी चिठ्ठियाँ

पूर्ण होकर भी अधूरी रह गयी अपनी कथा
हर दिशा में गूँजती मेरे विरह की ही व्यथा
अश्रु छाए हैं दृगों में और उर में है जलन -
प्रिय! तुम्हारी याद ने है तन-बदन मेरा मथा
नेह से ही नेह का विश्वास हारी चिठ्ठियाँ
बह रही हैं आँसुओं में अब तुम्हारी चिठ्ठियाँ

रह गया सबकुछ अधूरा, प्रेमधन जब खो गया
दर्द से संबंध जुड़ते, चैन का क्षण खो गया
थे बहुत सपने संजोए, मैं तुम्हें अपना सकूँ-
चाह खोई इस तरह की प्राण! जीवन खो गया
अब नहीं जातीं सँभाली प्राण-प्यारी चिठ्ठियाँ
बह रही हैं आँसुओं में अब तुम्हारी चिठ्ठियाँ