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"बाँस के वन / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर

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मोह लेते,ये भोले
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हर मानव मन।
 
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04:13, 11 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

बाँस के वन
बहुत ही सघन।
खड़े हैं कैसे
वो सीधे,ऊँचे तन।
इनमें भरा
शिष्टाचार का रंग।
बहुत बड़े
अनुशासित हैं वो
पिए हों मानों
भाईचारे की भंग।
आतुर हुए
अब छूने गगन
बरबस ही
मोह लेते,ये भोले
हर मानव मन।