भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाक़ी जंजाल का हवाल / संजय चतुर्वेद

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:26, 22 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेद |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी कविता में भक्तिकाल महाकाल हुआ,
बाक़ी जंजाल का हवाल अभी होना है
आधुनिकता के नाम गड़बड़ी हज़ार हुई,
साझा वह भूल थी मलाल अभी होना है
शब्द के दरोग़ा जिसे लीपते रहे हैं उसी,
चिकनी ज़मीन पे वबाल अभी होना है
आधुनिकता का सामान हो गया है मगर,
आधुनिकता का कविकाल अभी होना है ।

1999