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बाग़े-हयात की हुई आबो-हवा कुछ और ही / कांतिमोहन 'सोज़'

बाग़े-हयात की हुई आबो-हवा कुछ और ही I
अपना जतन कुछ और था होकर रहा कुछ और ही II

बचके भी जाएँ तो कहाँ अब सर कटाएँ या ज़बां,
बारे-गुनाह और है बारे-सज़ा कुछ और ही I

इसकी कोई सनद नहीं हमने किसी से क्या कहा,
अपना तो ये क़सूर है उसने सुना कुछ और ही I

हमने किया था फैसला जाके वहाँ कहेंगे क्या
देखा जो उसने आँख भर कहते बना कुछ और ही I

लाखों जतन किए मगर सोज़ न ये बता सके
तर्ज़े-जफ़ा कुछ और है अर्ज़े-वफ़ा कुछ और ही II