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बाग जैसे गूँजता है पंछियों से / ममता किरण

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बाग जैसे गूँजता है पंछियों से
घर मेरा वैसे चहकता बेटियों से

घर में आया चाँद उसका जानकर वो
छुप के देखे चूड़ियों की कनखियों से

क्या मेरी मंज़िल मुझे ये क्या ख़बर
कह रहा था फूल इक दिन पत्तियों से

दिल का टुकड़ा है डटा सीमाओं पर
सूना घर चहके है उसकी चिट्ठियों से

बंद घर देखा जो उसने खोलकर
एक कतरा धूप आई खिड़कियों से

एक शज़र खुद्दार टकराने को था
थी चुनौती सामने जब आँधियों से

ख़्वाब में देखा पिता को यों लगा
हो सदाएँ मंदिरों की घंटियों से

फ़ोन वो खुशबू कहाँ से लाएगा
वे जो आती थी तुम्हारी चिट्ठियों से