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बाघिन / नागार्जुन

लम्बी जिह्वा, मदमाते दृग झपक रहे हैं
बूँद लहू के उन जबड़ों से टपक रहे हैं
चबा चुकी है ताजे शिशुमुंडों को गिन-गिन
गुर्राती है, टीले पर बैठी है बाघिन

पकड़ो, पकड़ो, अपना ही मुँह आप न नोचे!
पगलाई है, जाने, अगले क्षण क्या सोचे!
इस बाघिन को रखेंगे हम चिड़ियाघर में
ऐसा जन्तु मिलेगा भी क्या त्रिभुवन भर में!

(१९७४)