भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बाजरा कहे मैं बड़ा अलबेला / हरियाणवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{ KKLokRachna |रचनाकार }} बाजरा कहे मैं बड़ा अलबेला दो मूसल से लड़ूँ अकेला ज...)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
{{
+
{{KKLokRachna
KKLokRachna
+
|रचनाकार=अज्ञात
|रचनाकार
+
}}
 +
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
 +
|भाषा=हरियाणवी
 
}}
 
}}
  

18:20, 13 जुलाई 2008 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बाजरा कहे मैं बड़ा अलबेला

दो मूसल से लड़ूँ अकेला

जो तेरी नाजो खीचड़ा खाय

फूल-फाल कोठी हो जाए ।


भावार्थ


--'बाजरा कहता है, मैं बड़ा अलबेला हूँ । दो मूसलियों से अकेला ही लड़ लेता हूँ । यदि तेरी कोमलांगी पत्नी मेरी

खिचड़ी खाएगी तो वह भी फूल-फूल कर कोठरी सरीखी दिखाई देने लगेगी ।