भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाढ़ के बाद / अमिताभ बच्चन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:11, 22 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमिताभ बच्चन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

असमय मर गए
ये एक जवान प्रवासी खेत-मज़दूर का
मिट्टी का घर है
जो ज़मीन पर पड़ा है

छप्पर सम्भालने वाला
लकड़ी का खम्भा
अब तक खड़ा है

पेड़ के नीचे बैठी
आसमान में उड़ते बादलों को निहारती
बेआवाज़ रोती हुई
प्रवासी मज़दूर की चिन्तामग्न बीवी
जिसकी छाती का सारा दूध सूख गया है
और गोद में बच्चा भूख से बिलबिला रहा है
जल्द से जल्द
घर खड़ा करने के बारे में सोच रही है

चौकी पर लोहे की एक पेटी है
जिस पर लाल गुलाब के छापे हैं

एक छाता है
जो बिना दिक़्क़त के खुल सकता है

शराब की छोटी बोतल है
जिसकी पेंदी में सरसों तेल की कुछ बून्दें हैं

खजूर की पत्तियों से बना एक डब्बा है
जिस पर फफून्द लगी है

स्टील के एक टूटे बर्तन में दो बैट्री हैं
जिसके अन्दर का रसायन बाहर आ रहा है

लकड़ी की एक बदरंग कुर्सी है
उसके नीचे अल्युमिनियम का एक बहुत पुराना बदना है

एक काला तवा है
पानी जिसका किनारा बुरी तरह खा चुका है

जीवनरक्षक दवाओं की कुछ टूटी बोतलें हैं
जो अपने मकसद में नाकाम रहीं

खम्भे से टँगा एक काले लोहे का कजरौटा है
कुछ फटे-पुराने कपड़ों के साथ रखा है एक टार्च
जिसका पीतल हरा हो रहा है

चमड़ा सड़ गया है
ढोलक नंगा हो गया है
पर वह बज रहा है
और उसमें आदमी को रुलाने की ताक़त बची हुई है