Last modified on 28 मई 2014, at 23:34

बाढ़ नहीं यह... / राजेन्द्र गौतम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:34, 28 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र गौतम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कल बस्ती थी
आज ताल है ।

बूढ़ी माँ
टूटी खटिया को
मुश्किल छत तक ठेला
लोटा-थाली-आटा-दालें
संग गया ले रेला
जल है यह
या एक जाल है ।

सोना तो
मेरी गोदी थी
रूपा कौन संभाले
धनिया को तो लील गए थे
आसपास के नाले
बाढ़ नहीं यह
महाकाल है ।

बेघर तो
पहले से ही थे
अब छूटा फुटपाथ
पा लेंगे क्या सभी निवाले
जितने पसरे हाथ
डालों पर भी
कहाँ छाल है ।

कौन उठाएगा
छिगुनी पर
अब के यह गोवर्धन
इनका तो खुद ही संकट में
रहता है सिंहासन
इन्द्रासन की
तुरुप-चाल है ।