Last modified on 17 अप्रैल 2010, at 21:01

बाढ़ से बाहर निकालो / अत्तिला योझेफ़

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अत्तिला योझेफ़  » बाढ़ से बाहर निकालो

मुझे डराओ मेरे छिपे हुए देवता,
मुझे तुम्हारा रोष चाहिए, तुम्हारा कोड़ा, तुम्हारी कड़क
जल्दी करो, आकर बाढ़ से मुझे बाहर निकालो

ऐसा न हो कि हमें नीचे बुहार दिया जाए
धूल में मेरी नज़रों तक, एक अंधा
और अभी तक मैं दर्द की छुरी से खेलता हूँ
इंसानी दिल के झेलने के लिए विकट

कितनी आसानी से मैं सुलग रहा हूँ ! सूरज
झुलसाने की स्थिति में नहीं- डरते रहो-
मुझ पर चीख़ते हो, आग को अकेला छोड दो

तुमने मेरी हथेली पर इजोत देने वाला बोल्ट दे मारा
मुझमें हथौडे की तरह लगे गुस्से से या अनुग्रह से
यह भोलापन ही दुष्टता (बुराई) है
यही भोलापन मेरा पिंजड़ा हो सकता है
शैतान से भी बुरी तरह झुलसा सकता है
मैं झूठ बोलता हूँ कि यह भग्न-पोत का खंडहर है

उपलाते क्रूर विप्लव के द्वारा उछाला गया है
अकेले ही मैं दुस्साहस करता हूँ, ललकारता हूँ
बमुश्किल कुछ भी शिनाख़्त होता है
मरने के लिए मैं अपनी साँसे रोक लूँगा
तुम्हारे छड़ और कारिंदे इस तरह अवज्ञा करेंगे

और साहस के साथ मेरी आँखों में देखो
तुम रिक्त हो, मनुष्यता से रहित।

रचनाकाल : 1937

अंग्रेज़ी से अनुवाद :