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बातां रो उच्छब / हरिमोहन सारस्वत

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ब्याव रै घर मांय
टिण्डसी बन्दारती लुगायां
कर रई है हथाई.
मुळकती, खिलखिलावंती
तप्योड़ा चैरां मांय
बिजळी ज्यूं पळपळांवती
पाट-पाट हांसती
हरख मनांवती
फळसो उगेरती
धाप-धाप गांवती
जीवै है ब्याव नै
कदास पीवै है ब्याव नै

पण बातां मायं चाणचकै
हो ज्यावै है बै सगळी उदास
भरीज ज्यावै है बांरी आंख्यां
जद भुआजी बतावै है
सासु अर नणदां री टिचकारयां
देवरां री गाळयां
अर धणी रै लिपळैपणै
बिच्चाळै निसरी
आपरी जिया जूण री
दोरी सी कहाणी

लखदाद है भुआजी नै
इत्ती अबखायां रै पछै बी
मुळकै है बै अजै तांई !
लखदाद है लुगायां नै
बांरी आख्यां सूं अे बातां सुण
पाणी ढुळकै है अजै तांई !

पण खुसर-पुसर करती
सारै बैठी कंवारी छोरयां
मांय-मांय हांसै
सैणा सूं टमरका करती
अेक दूजै नै बतावै कै-
भुआजी बांदरा बणा रया है.
मन्नै लागै
ब्याव रै मिस
भुआजी-लुगायां अर सै छोरयां
मना रई है
फगत बातां रो उच्छब