भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बात तुम करना नहीं / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Kavita Kosh से

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन उँगलियों की

बात तुम करना नहीं-

विषधरों के

डंक अनगिन

खा चुकीं ये ।

इन विषधरों की

बात तुम करना नहीं-

दूध जितना भी

पिलाओ

मंत्र वेदों के

सुनाओ

काटना

सीखा इन्होंने

जन्म से

मज़बूर हैं ये ।

इन मिठबोले

दोस्तों की

बात तुम करना नहीं-

सुधा तुम

इनको पिलाओ

इनके लिए तुम

मिट भी जाओ

लूटना है

धर्म इनका

दुष्कर्म ही

कर्म इनका ,

लाज सारी

घोल कर ये पी चुके हैं-

दुःख न करना

इन सभी को माफ़ करना

विषधरों को

मिठबोलो दोस्तों को ।