भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बात बनती नहीं / हनीफ़ साग़र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:00, 15 मई 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बात बनती नहीं ऐसे हालात में
मैं भी जज़्बात में, तुम भी जज़्बात में

कैसे सहता है मिलके बिछडने का ग़म
उससे पूछेंगे अब के मुलाक़ात में

मुफ़लिसी और वादा किसी यार का
खोटा सिक्का मिले जैसे ख़ैरात में

जब भी होती है बारिश कही ख़ून की
भीगता हूं सदा मैं ही बरसात में

मुझको किस्मत ने इसके सिवा क्या दिया
कुछ लकीरें बढा दी मेरे हाथ में

ज़िक्र दुनिया का था, आपको क्या हुआ
आप गुम हो गए किन ख़यालात में

दिल में उठते हुए वसवसों<ref>तरंग</ref> के सिवा
कौन आता है `साग़र' सियह रात में

शब्दार्थ
<references/>