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बात होगी तो रू-ब-रू होगी / सिया सचदेव

बात होगी तो रू -ब- रू होगी
आँखों आँखों में गुफ्तगू होगी

बात चलती रहेगी ग़ालिब की
मीर की भी कभू कभू होगी

सामने मेरे जब भी तुम होगे
फिर से जीने की आरज़ू होगी

जिस में मंजिल का कोई ज़िक्र न हो
एक ऐसी भी जुस्तजू होगी

काम आएगी मेरी जिंदादिली
जब कभी मौत रू -ब -रू होगी

आपको मैं संभाल कर रक्खूं
इसमें मेरी भी आबरू होगी

हर क़दम फूँक फूँक रखना सिया
सब की नज़रों में सिर्फ तू होगी