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"बादल राग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / भाग ५" के अवतरणों में अंतर

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निरंजन बने नयन अंजन!
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कभी चपल गति, अस्थिर मति,
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जल-कलकल तरल प्रवाह,
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वह उत्थान-पतन-हत अविरत
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संसृति-गत उत्साह,
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कभी दुख -दाह
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कभी जलनिधि-जल विपुल अथाह--
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कभी क्रीड़ारत सात प्रभंजन--
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बने नयन-अंजन!
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कभी किरण-कर पकड़-पकड़कर
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चढ़ते हो तुम मुक्त गगन पर,
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झलमल ज्योति अयुत-कर-किंकर, 
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सीस झुकाते तुम्हे तिमिरहर--
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अहे कार्य से गत कारण पर!
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निराकार, हैं तीनों मिले भुवन--
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बने नयन-अंजन!
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आज श्याम-घन श्याम छवि
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मुक्त-कण्ठ है तुम्हे देख कवि,
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अहो कुसुम-कोमल कठोर-पवि!
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शत-सहस्र-नक्षत्र-चन्द्र रवि संस्तुत
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नयन मनोरंजन!
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कभी चपल गति, अस्थिर मति,<br>
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चढ़ते हो तुम मुक्त गगन पर,<br>
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बने नयन-अंजन !<br>
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मुक्त-कण्ठ है तुम्हे देख कवि,<br>
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अहो कुसुम-कोमल कठोर-पवि !<br>
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शत-सहस्र-नक्षत्र-चन्द्र रवि संस्तुत<br>
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नयन मनोरंजन !<br>
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बने नयन अंजन !<br><br>
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00:09, 4 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

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निरंजन बने नयन अंजन!
कभी चपल गति, अस्थिर मति,
जल-कलकल तरल प्रवाह,
वह उत्थान-पतन-हत अविरत
संसृति-गत उत्साह,
कभी दुख -दाह
कभी जलनिधि-जल विपुल अथाह--
कभी क्रीड़ारत सात प्रभंजन--
बने नयन-अंजन!
कभी किरण-कर पकड़-पकड़कर
चढ़ते हो तुम मुक्त गगन पर,
झलमल ज्योति अयुत-कर-किंकर,
सीस झुकाते तुम्हे तिमिरहर--
अहे कार्य से गत कारण पर!
निराकार, हैं तीनों मिले भुवन--
बने नयन-अंजन!
आज श्याम-घन श्याम छवि
मुक्त-कण्ठ है तुम्हे देख कवि,
अहो कुसुम-कोमल कठोर-पवि!
शत-सहस्र-नक्षत्र-चन्द्र रवि संस्तुत
नयन मनोरंजन!
बने नयन अंजन!

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