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बादल सरोज के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'

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(बादल सरोज के लिए)

वो चाँद है सहमा हुआ ख़ामोश नहीं है।
एक दिल है धड़कता हुआ ख़ामोश नहीं है॥

उस झील में वादी की वो चाँदी का सफ़ीना
लहरों पे फिसलता हुआ ख़ामोश नहीं है।

जूड़े में शबे-वस्ल ने टाँका है जतन से
गजरा है महकता हुआ ख़ामोश नहीं है।

बाँहों में उठाकर उसे सीने से लगा लो
बच्चा है सिसकता हुआ ख़ामोश नहीं है।

आकाश की बाँहों में बिलख उट्ठी है धरती
आँसू है ढुलकता हुआ ख़ामोश नहीं है।

एक चीख़ के मानिन्द खटकता है फ़लक में
पारा है सरकता हुआ ख़ामोश नहीं है।

दुनिया के करम याद न दुनिया के सितम याद
वो सोज़ है हँसता हुआ ख़ामोश नहीं है।

2002-2017